बैजनाथ मंदिर जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र शिवलिंग है जो झारखंड के देवघर में स्थित है। इस जगह को लोक बाबा बैजनाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। यह ज्योतिर्लिंग एक सिद्धपीठ है, कहा जाता है कि यहां पर आने वालों लोगों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। इसी कारण से इस लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार सावन माह को भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे उपयुक्त समय बताया गया है। इस पावन सावन महीने में लाखों श्रद्धालु चल कर 105 किलोमीटर दूर सुल्तानगंज से जल भरकर कावर के जरिए बाबा बैजनाथ का जलाभिषेक करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं। बैजनाथ धाम में स्थित शिवलिंग के पीछे की कहानी इतनी पौराणिक और दिलचस्प है की जिसे सुनकर आप भी इस पावन धाम के दर्शन करना जरूर चाहेंगे। दोस्तों आज हम आपको इस पोस्ट के जरिए बाबा बैजनाथ धाम देवघर से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बातों को बताएंगे और यहां स्थित शिवलिंग के पीछे की पौराणिक कहानी को भी बताएंगे।
बाबा बैजनाथ का धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस ज्योतिर्लिंग को मनोकामना लिंग भी कहा जाता है। इस ज्योतिर्लिंग के पीछे की यह मान्यता है कि राक्षसराज रावण ने कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या के बाद इसे वरदान स्वरुप में प्राप्त किया था। बैजनाथ ज्योतिर्लिंग एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान है। पुराणों के अनुसार सुदर्शन चक्र के प्रहार से यहीं पर मातृशक्ति का हृदय कट के गिरा था। बैद्यनाथ दरबार 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहते हैं शिव और शक्ति के मिलन स्थल पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना खुद देवताओं ने की थी। बैजनाथ धाम के बारे में कहा जाता है कि यहां मांगी मनोकामना काफी देर में सही लेकिन पूर्ण जरूर होती है। भगवान श्री राम और महाबली हनुमान जी ने सावन माह के दौरान यहां कावड़ यात्रा भी की थी। यहां ज्योतिर्लिंग नीचे की ओर दबा हुआ है शिव पुराण पदो पुराण के पाताल खंड में ज्योतिर्लिंग की महिमा गाई गई है। मंदिर के समीप एक विशाल तालाब भी स्थित है। बाबा बैजनाथ का मुख्य मंदिर सबसे पुराना है, जिसके आस पास अनेकों और भी मंदिर भी बने हैं। बाबा भोलेनाथ का मंदिर मां पार्वती जी के मंदिर से जुड़ा हुआ है। यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के 2 दिन पूर्व बाबा मंदिर, मां पार्वती और लक्ष्मी नारायण के मंदिर से पंचशुल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशुल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। यह कुछ रोचक बातें बाबा बैद्यनाथ धाम के बारे में है, चलिए बात करते हैं यहां स्थित शिवलिंग की स्थापना की।
पौराणिक कथाओं के अनुसार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तपस्या कर रहा था। वह एक एक करके अपना सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद, जब रावण अपना दसवां सिर काटने वाला था तब भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा। रावण की सोने की लंका के अलावा तीनो लोक में शासन करने की स्थिति थी साथ ही साथ उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्व को भी कैद करके रखा हुआ था। इसी वजह से रावण ने यह इच्छा जताई कि भगवान शिव भी कैलाश छोड़ कर लंका में रहे। इसीलिए उसने कामनालिंग ले जाने का वरदान मांग लिया। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, मगर एक चेतावनी के साथ कि अगर वह कामनालिंग को पृथ्वी के मार्ग में कहीं रख देगा तो वह वही स्थापित हो जाएगा। महादेव की चेतावनी के बावजूद भी रावण शिवलिंग को ले जाने के लिए तैयार हो गया। इधर भगवान श्री शिव की कैलाश छोड़ने की बात सुनते ही बाकी देवता चिंतित हो गए। इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब श्री हरि ने लीला रची, उन्होंने वरुण देव को अचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। जब रावण अचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो उसे देवघर के पास लघुशंका लग गई। उसे शिव लिंग को हाथ में लेकर लघुशंका करना उचित नहीं लगा इसलिए उसने अपने आसपास देखा कि कोई मिल जाए ताकि उसे शिवलिंग थमाके वाह लघुशंका से निवृत्त हो सके। कुछ देर के बाद ही उसे एक ग्वाला नजर आया, जिसका नाम बैजु था। कहते हैं उस नाम के रूप में भगवान विष्णु वहां आए थे। रावण ने उस ग्वाला से कहा कि वह शिव लिंग को पकड़ कर रखे ताकि वह लघुशंका से निवृत्त हो सके। और साथ ही साथ यह भी कहा कि इस शिवलिंग को भूल से भी भूमि पर नहीं रखें। रावण जब लघुशंका करने लगा तब उसकी लघुशंका से एक तालाब बन गया लेकिन रावण की लघुशंका नहीं समाप्त हुई।
No comments:
Post a Comment